संत दर्षन की महिमा
एक बार नारद भगवान श्री विश्णु के पास गये और पूछा हे प्रभु सन्त दर्षन की महिमा क्या है सन्त दर्षन से क्या फल मिलता है तो भगवान श्री विश्णु ने कहा कि हे नारद तुम सन्त दर्षन की महिमा जानना चाहते हो परन्तु मैं तुमको सन्त दर्षन की महिमा नहीं बता सकता हां पर इतना बता सकता हूं कि तुम्हें सन्त दर्षन की महिमा कौन बता सकता है तुम पृथ्वी लोक पर जाओ और वहां एक नाली के कीड़े से जाकर सन्त दर्षन की महिमा पूंछो। तो नारद जी ने कहा कि प्रभु एक नाली का कीड़ा क्या मुझे सन्त दर्षन की महिमा बताएगा, प्रभु मेरे साथ मजाक मत कीजिए और मुझे सन्त दर्षन की महिमा बताने की कृपा करें। तो भगवान श्री विश्णु ने कहा कि हे नारद मैं तो तुम्हें सन्त दर्षन की महिमा मौखिक रूप से बताऊंगा परन्तु वह नाली का कीड़ा तो तुम्हें कर के दिखाएगा। अब भगवान श्रीविश्णु का आदेष था तो नारद को तो पृथ्वी लोक पर जाना ही था। महर्शि नारद पृथ्वी लोक गये और वहां एक नाली के कीड़े से जाकर पूंछा कि हे कीड़े क्या तुम मुझे सन्त दर्षन की महिमा बता सकते हो, वैसे तो मैं जानता हूं कि तुम नहीं बता सकते परन्तु श्रीविश्णु का आदेष है इसलिए मैं तुमसे पूंछता हूं क्या तुम जानते हो सन्त दर्षन की महिमा। तो नाली के कीड़े ने कहा कि मैं तो ठहरा नाली की कीड़ा मैं क्या जानूं सन्त दर्षन की महिमा। तो नारद जी बोले वह तो मैं जानता ही था कि तुम मुझे नहीं बता सकते वह तो श्रीहरि का आदेष था इसलिए मैं तुम्हारे पास आया था अच्छा तो मैं चलता हूं। तो कीड़े ने कहा कि ठहरो, कहां जा रहे हो। तो नारद जी ने कहा कि तुमने नहीं बताया तो मैं जा रहा हूं प्रभु के पास। तब कीड़े ने कहा कि मैंने इतना कहा है कि मैं तुम्हें सन्त दर्षन की महिमा नहीं बता सकता पर कौन बता सकता है इसका मार्गदर्षन तो मैं कर सकता हूं। तो नारद बोले, बताओ। तब कीड़े ने कहा कि वह पीपल का वृक्ष देख रहे हैं आज से तीन महीने बाद इस पर एक तोते का बच्चा आकर बैठेगा आप उस से पूंछना कि सन्त दर्षन की महिमा क्या है। और इतना कहते ही उस कीड़े की राम नाम सत्य हो गई। अब नारद जी परेषान कि यह कीड़ा तो मर गया अब अगर तीन महीने बाद इसकी बात असत्य हुई तो मैं किससे जाकर षिकायत करूंगा, चलो देखते हैं। और श्री नारद जी ने तीन महीने का इन्तजार किया और तीन महीने बाद आकर पीपल के वृक्ष पर आकर देखा तो एक तोते का बच्चा डाल पर बैठा हुआ था। तो नारद जी ने उस तोते के बच्चे से पूंछा कि क्या तुम मुझे सन्त दर्षन की महिमा बता सकते हो, तो उस तोेते ने कहा कि नहीं महाराज मैं तो एक पक्षी हूं मैं क्या जानूं सन्त दर्षन की महिमा। मैं आपको सन्त दर्षन की महिमा नहीं बता सकता परन्तु मैं आपका मार्गदर्षन कर सकता हूं। तब नारद जी ने कहा चलो तुम भी मार्गदर्षन करो तो तोता बोला कि आज से छः महीने पष्चात इस नगर के ब्राह्मण के यहां एक गाय का बछड़ा जन्म लेगा, आप उससे जाकर पूंछना कि सन्त दर्षन की महिमा क्या है। और इतना कहते ही तोते की राम नाम सत्य हो गई। अब नारद जी ने छः महीने का इन्तजार किया और छः महीने के पष्चात नगर के एक ब्राह्मण के यहां गाय के एक सुन्दर बछड़े ने जन्म लिया। तो नारद जी ब्राह्मण के यहां गये और बछड़े के पास जाकर कान में कहा कि क्या तुम मुझे सन्त दर्षन की महिमा बता सकते हो, तो बछ़ड़े ने कहा कि मैं तो ठहरा जड़मति पशु मैं क्या जानूं सन्त दर्षन की महिमा, पर मैं आपका मार्गदर्षन कर सकता हूं। कि आज से नौ महीने पश्चात इस नगर के राजा के यहां एक राजकुमार जन्म लेगा आप उससे जाकर पूंछना वह आपके प्रष्न का उत्तर जरूर देगा। और इतना कहते ही बछड़े की भी राम नाम सत्य हो गयी। और नौ महीने के पश्चात उस बछड़े की भी बात सत्य निकली और नगर के राजा के यहां एक सुन्दर से राजकुमार ने जन्म लिया। तब नारद जी राजा के यहां गए और बोले राजन मुझे आपके पुत्र से मुझे गुप्त मंत्रणा करनी है। तो राजा ने कहा कि आप क्या गुप्त मंत्रणा करोगे आप तो मेरे पुत्र को उपदेष ही दोगे, यह तो मेरे पुत्र का अहोभाग्य है। तो नारद जी ने उस बालक से कहा कि पहले तो तुम मुझे बचन दो कि जब तक तुम मेरे प्रष्न का उत्तर नहीं दे देते और जब तक मैं तुम्हारे इस महल को छोड़कर चला ना जाऊं, तब तक तुम इस मृत्यु लोक को नहीं छोड़ोगे। वरना तुम तो ठहरे राजा के पुत्र यदि तुम्हारी भी मृत्यु हो गई तो बाबा जी को तो हथकड़ियां लग जाएंगी। तो उन्होंने उस राजकुमार से पूंछा कि क्या तुम मुझे बता सकते हो कि सन्त दर्षन की महिमा क्या है तो बालक ने कहा कि आपको अभी तक पता नहीं चला कि सन्त दर्षन की महिमा क्या है। आप तो ज्ञानी हो आपको तो पता चल जाना चाहिए था कि सन्त दर्षन की महिमा क्या है। तो नारद जी ने कहा कि मुझे अब तक पता नहीं चला क्या तुमको पता है तो मुझे जल्दी से बताओ। तो उस राजकुमार ने कहा कि यह सन्त दर्षन की महिमा ही तो जो मैं आज एक राजकुमार के रूप में नर देह धारण किए सामने खड़ा हूं, मैं वहीं नाली का कीड़ा हूं जो आज सन्त दर्षन की महिमा के कारण आपके सामने इस रूप में खड़ा हूं। मैं आपके दर्षन के फलस्वरूप नाली के कीड़े से पक्षी की योनि में आया। और दुबारा आपके दर्षन के कारण पक्षी की योनि से बछड़े की योनि में आया। और फिर आपके दर्षन के फलस्वरूप में बछड़े की योनि से इस राजा के यहां राजकुमार के रूप जन्म लिया। ये सन्त दर्षन की महिमा ही तो है जिसके कारण मैं चौरासी लाख योनियों में भटकने की बजाय इस मनुश्य की देह में आ गया।